1. रक्त क्या है ? मनुष्य में श्वेत रक्त कणों की संख्या लिखें l
उतर- रक्त एक प्रकार का संयोजी उतक है l मनुष्य में स्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या 5000-10000 प्रति घन मी० ली० रक्त
होती है l
2. रक्त क्या है ? मनुष्य में R.B.C की संख्या लिखें l
उतर- रक्त एक प्रकार का तरल संयोजी उतक है जिसका मूल कार्य
परिवहन है l मानव रक्त में R.B.C की संख्या 45-50 लाख प्रति घन मिली० रक्त
होता है l
3. उत्सर्जन क्या है ? इसके दो प्रमुख अंगों के नाम दें l
उतर- शारीर में उपापचयी क्रियाओं द्वारा बने नेत्र जनिय अपशिष्ट
पदार्थों का शारीर से बाहर निकालने की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं ? उत्सर्जी अंग – वृक्क , फेफड़ा , त्वचा l
4. किन्डवन क्या है ?
उतर- वह रासायनिक क्रिया जिसमें सूक्ष्म जिव (यीस्ट) शर्करा का अपूर्ण
विघटन करके CO2 तथा एल्कोहल , एसिटिक अम्ल इत्यादि का निर्माण होता है , किन्द्वन कहलाती है l इसमें कुछ उर्जा भी मुक्त होती हैं l
5. जल-रंध्र किसे कहते हैं ?
उतर- ये विशेष रचनाएँ जलिए पौधों या छायादार शाकीय पौधों में पाई
जाती है l ये पतियों के शिराओं के
शीर्ष पर अति सूक्ष्म छिद्र के रूप में होती है जिसमें पानी बूंदों के रूप में नी:स्राव होता है l इसी कारन उन्हें जल्मुख या जलरंध्र कहते हैं l
6. विसरण किसे कहते
हैं ?
उतर- यह वह क्रिया है जिसमें उच्च सांद्रता क्षेत्र से निम्न
सांद्रता की ओर आयनों और अणुओं का अभिगमन होता है l विसरण में
अर्द्धपारगम्य झिल्ली से होकर अभिगमन नहीं होता है l यह क्रिया ठोस , द्रव और गैस
तीनों में हो सकती है l
7. हमारे शारीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या
परिणाम हो सकता हैं ?
उतर- हमारे शारीर में हीमोग्लोबिन की कमी से रक्ताल्पता हो जाता
है l हमें श्वसन के लिए आवश्यक
आक्सीजन की प्राप्ति नहीं होगी जिस करण हम शिघ्र थक जायेंगे l हमारा भार कम हो जाएगा l हमारा रंग पिला पद जाएगा l हम कमजोरी अनुभव करेंगें l
8. श्वसन किसे कहते हैं ?
उतर- श्वसन जीवों में होनेवाली एक आक्सीकरण क्रिया है , जिसमें जटिल कार्बनि पदार्थों का आक्सीजन की
उपस्थिति या अनुपस्थिति में अपघटन किया जाता है , जिसके फलस्वरूप जल , CO2 तथा उर्जा मुक्त होती है l
9. आक्सी श्वसन किसे कहते हैं ?
उतर- यह वह श्वसन है जिसमें भोज्य पदार्थों का आक्सीकरण आक्सीजन की उपस्थिति में पूर्ण रूपेण CO2 तथा जल में हो जाता है l इस श्वसन में अत्यधिक मात्रा में उर्जा उत्पन्न होती है l
उतर- यह वह श्वसन है जिसमें भोज्य पदार्थों का आक्सीकरण आक्सीजन की उपस्थिति में पूर्ण रूपेण CO2 तथा जल में हो जाता है l इस श्वसन में अत्यधिक मात्रा में उर्जा उत्पन्न होती है l
10. क्या होगा अगर मानव शारीर में दोनों वृक्कों को
हटा दिया जाये l
उतर- मनुष्य के शारीर से दोनों वृक्क हटा देने से उसका उत्सर्जन
तंत्र नष्ट हो जायेगा जिससे यूरिया आदि पदार्थ शारीर से बाहर नहीं निकल पाएंगे l
11. अनाक्सी श्वसन किसे कहते हैं ?
उतर- यह वह श्वसन है , जिसमें भोज्य
पदार्थ का अपूर्ण आक्सीकरण आक्सीजन की उपस्थिति में होता है l इसमें अपेक्षाकृत कम उर्जा मुक्त होती है ?
12. आंत में विलाई पाए जाते हैं लेकिन आमाशय में
नहीं क्यों ?
उतर- आंत में पचे हुए भोजन के अवशोषण के कार्य को पूरा करने के
लिए विलाई पाए जाते हैं l ये अवशोषण सतह को
बढ़ाते हैं l आमाशय में अवशोषण का
कार्य नहीं के बराबर होता है l इस कारण इसमें
विलाई नहीं पाये जाते हैं l
13. मछली , मच्छर , केचुआ और मनुष्य के श्वसन अंगों के नाम लिखें l
उतर- (i) मछली - गिलछिद्र
(ii) मच्छर - वायुनालिकाएं
(iii) केंचुआ - त्वचा द्वारा
(iv) मनुष्य - फुफड़े द्वारा l
१४. काइम और काइल में अंतर स्पष्ट करें l
उतर- आमाशय की दिवार की क्रमाकुंचन गति के कारण बनी भोजन की
लुग्दी को काइम कहते हैं l यह अम्लीय
प्रकृति का होता है , जबकि ग्रहणी की
दीवार की क्रमाकुंचन गति के कारण बने पेस्ट को काइल कहते हैं l यह क्षारीय प्रकृति का होता है l
15. वाष्पोत्सर्जन क्या है ?
उतर- वाष्पोत्सर्जन एक जैविक क्रिया है l इस क्रिया में पानी पौधों के वायवीय भागों से वाष्प के रूप
में बाहर निकलता है l यह क्रिया रक्षक
कोशिकाओं के द्वारा बाहर निकलती है l
16. मनुष्य के आमाशय में जो HCL अम्ल स्रावित होता है वह कैसे कार्य करता है ?
उतर- Gastric HCL अम्लीय माध्यम प्रदान करता है जो Gastric Engyme पेप्सिन को सक्रीय करता
है l यह सक्रिय होकर भोजन में
पाये जाने वाले विभिन्न कीटाणुओं को मारता है l
17. अत्यधिक व्यायाम के दौरान खिलाडी के शरीर में
क्रैम्प होने लगता है l क्यों ?
उतर- अत्यधिक व्यायाम के दौरान खिलाडी के शारीर में आक्सीजन का
आभाव हो जाता है और शारीर में अवयवीय श्वसन प्रारंभ हो जाता है इसमें पायरुवेट
लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित हो जाता है और खिलाडी के शारीर में क्रैम्प इसी
लैक्टिक अम्ल के कारण होता है l
18. पौधें में गैसों का आदान-प्रदान कैसे होता
हैं ?
उतर- पौधों में गैसों का आदान-प्रदान उनकी
पतियों में उपस्थित रंध्र के द्वारा होता है l उनके CO2 एवं O2 का आदान प्रदान विसरण
क्रिया द्वारा होता है जिसकी दिसा पौधों की आवस्यकता एवं पर्यावरणीय अवस्थाओं पर
निर्भर करता है l
19. स्थलीय जीव और जलीय जीव , श्वसन क्रिया के लिए किस प्रकार आक्सीजन से श्वसन क्रिया
करते हैं ?
उतर- स्थलीय जीव वायुमंडल में उपस्थित आक्सीजन से श्वसन क्रिया
करते हैं जबकि जलीय जीव पानी में घुला हुआ आक्सीजन से श्वसन क्रिया करते हैं l
20. उत्सर्जन क्या है ? मानव में इसके दो प्रमुख अंगो के नाम लिखें l
उतर – शारीर में उपापचयी क्रियाओं द्वारा बने नेत्र
जनिय अपशिष्ट पदार्थों का शारीर से बाहर निकालने की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं l
21. उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के घटक क्या
हैं ?
उतर- उच्च संगठित पादपों में परिवहन के निम्नलिखित भाग होते हैं –
(i) जाइलम वहानियाँ जो खनिज तथा जल को भूमि से
शोषित करके पाइप के शिखर तक ले जाती हैं l
(ii) फ्लोयम वाहिनियाँ पतियों में तैयार भोजन पादप
के अन्य भागों तक ले जाती है जिन्हें संचित करने की आवश्यकता होती है l
22. पौधों में वाष्पोत्सर्जन क्या है ? इसके महत्वों को लिखें l
उतर- पौधे में पतियों के छिद्रों से जलवाष्प के रूप में जल के
बाहर निकालने की क्रिया वाष्पोत्सर्जन कहलाती है l महत्व – (i) यह जल अवशोषण को
नियमित करता है l/*(ii) रासरोपण के प्रति
उतरदायी होता है l (iii) पौधों में तापमान
संतुलित
रहता है l
23. श्वसन के लिए आक्सीजन करने की दिशा में एक जलीय
जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद है ?
उतर- जलीय जीव जल में घुली हुई आक्सीजन का श्वसन के लिए उपयोग
करते हैं l जल में घुली हुई आक्सीजन
की मात्रा वायु में उपस्थित आक्सीजन की मात्रा की तुलना में बहुत कम है l इसलिए जलिए जीवों के श्वसन के दर स्थलीय जीवों
की अपेक्षा अधिक तेज होती है l मछलियाँ अपने
मुंह के द्वारा जल लेती हैं और बल पूर्वक इसे क्लोम तक पहुंचाती हैं वहां जल में
घुली हुई आक्सीजन को रुधिर प्राप्त कर लेता है l
24. कोई वस्तु सजीव
है , इसका निर्धारण करने के
लिए हम किस माप दण्ड का उपयोग करेंगे ?
उतर- यधपि हम अपने चारो ओर अनेकों वस्तुओं को देखते हैं l अब हमें इस बात की पुष्टि करनी है कि कौन-सी वस्तु अजीवित है l इसके लिए हम उनमें होने वाली गति को देखते हैं l यदि वस्तु बिना किसी ब्रांह शक्ति के ग्रहण
करती है तो उसे जीवित करते हैं l यदि कोई
बहुकोशिकीय जीव सोई हुई अवस्था में है तो भी आणविक गति निरंतर हो रही है l यधपि वह बाहर से दिखाई नहीं पड़ती तो भी उसमें
गति हो रही होती है l स्पष्ट है की गति
द्वारा हम सजीव तथा निर्जीव वस्तु का निर्धारण कर सकते हैं l
25. प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री
पौधा कहाँ से प्राप्त करता है ?
उतर- पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की
क्रिया होती है जिसके लिए निम्नलिखित चार वस्तुओं की आवश्यकता होती है –
(i) कार्बन-डाईआक्साइड – पौधे इसे
वायुमंडल से प्राप्त करते हैं l
(ii) जल – पौधा इसे भूमि से जड़ों द्वारा प्राप्त करते
हैं l
(iii) पर्णहरित – यह पौधों की कोशिकाओं में हरित लवक में
उपस्थित होता है l
(iv) सूर्य का प्रकाश – पौधे इसे सूर्य के प्रकाश से फोटोन उर्जा कणों
के रूप में प्राप्त करते हैं
26. हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की
आवश्यकता पूरी करने में विसरण क्यों अपर्याप्त है ?
उतर- मानव जैसे बहुकोशिकीय जीवों जिनके शारीर में कोशिकाएं तथा
उतक ही नहीं होते हैं , इनमें उर्जा की
बहुत अवस्यकता होती है अधिकांशत: अंग शारीर में
अन्दर की ओर स्थित होते हैं अत: विसरण क्रिया
द्वारा उन सभी अंगों को ऑक्सीजन नहीं हो पता l परिणामत : शारीरिक अंग काम
नहीं करतें अत: मानव जैसे जीवों
में ऑक्सीजन को शारीर को विभिन्न अंगों की कोशिकाओं में पहुँचाने हेतु एक तंत्र
होता है जिसे श्वसन तंत्र कहते हैं l
27. गैसों के विनिमय के लिए मानव-फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे
अधिकाल्पित किया है?
उतर- जब हम श्वांस अन्दर लेते हैं तब हमारी पशलियाँ ऊपर उठती हैं
l वे बाहर की झुक जाती हैं l इसी समय डायफ्राम की पेसियां संकुचित तथा उदर
पेशियाँ शिथिल हो जाती है इससे वक्षीय गुहा का क्षेत्रफल बढ़ता है और साथ हि
फुफ्फुस का क्षेत्रफल भी बढ़ जाता है जिसके परिणामस्वरूप श्वसन पथ से वायु अन्दर
आकर फेफड़े में भर जाती है l
28. ‘लाल रक्त कोशिका’ की संरचना तथा
कार्य लिखिए l
उतर- इन्हें एरिथ्रोसाइटस भी कहते हैं , जो उभयान्तोदर डिस्क की तरह रचना होती हैं l इनमें केन्द्रक, माइटोकान्डिया एवं अंतर्द्रव्यजालिका जैसे कोशिकांगों का
आभाव होता है l इनमें एक प्रोटीन
वर्णक हिमोग्लोबिन पाया जाता है , जिसके कारण रक्त
का रंग लाल होता है l इसके एक अणु की
क्षमता ऑक्सीजन के चार अणुओं से संयोजन की होती है l इसके इस विलक्षण गुण के कारण इसे ऑक्सीजन का वाहक कहते हैं l मनुष्य में इनकी जीवन अवधि 120 दिनों की होती है , और इनका निर्माण अस्थि-मज्जा में होता
है l मानव के प्रति मिलीलीटर
रक्त में इनकी संख्या 5-5.5 मिलियन तक होती
है l
29. पोषण की परिभाषा दीजिए l पोषण की विभिन्न विधियाँ कौन-कौन सी हैं ?
उतर- पोषण – वह समस्त
प्रक्रम जिसके द्वारा जीवधारी ब्रांह वातावरण से भोजन ग्रंहण करते हैं तथा भोज्य
पदार्थ से उर्जा मुक्त करके शारीर की वृद्धि करते हैं , उसको पोषण कहते हैं l
30. गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कुपिकाएं किस
प्रकार अभिकल्पित हैं ?
उतर- मानव के शारीर में दो फेफड़े होते हैं l प्रत्येक फेफड़ा लाखों सूक्षम कुपिकाओं में विभाजित होता है l वायु की अनुपस्थिति में कुपिका अति अल्प स्थान
घेरती है l यदि इन कुपिकाओं को
निकालकर फैला दिया जाये तो वे 80 वर्ग सेमी. क्षेत्रफल में फ़ैल जाएगी l इससे श्वसन क्रिया में सहायता मिलती है l
31. जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रम को
आवश्यक मानेंगे ?
उतर- यधपि जीवधारियों में अनेक क्रियाएँ की जाती हैं ; जैसे : एक व्यक्ति एक
स्थान से दुसरे स्थान पर जा रहा है , एक कुता ब्रेड खा
रहा है , एक मख्खी उड़ रही है आदि l ये सभी क्रियाएँ जीवन से सम्बंधित होती हैं l इन्हें जैविक क्रियाएँ कहते हैं ; जैसे गति , पाचन , श्वसन , परिवहन उत्सर्जन , वृद्धि आदि l ये सभी क्रियाएँ
जीवन को बनाये रखने के लिए अनिवार्य होती है l
32. श्वसन में मैइट्रोकान्डिया की क्या भूमिका है ?
उतर- श्वसन की ग्लैकोलिसिस क्रिया कोशिका द्रव्य में लेकिन
पाईरुविक अम्ल तथा श्वसन के दौरान बने NADH2 का ऑक्सीकरण माईटोकाँडिया के अन्दर होता हैं l इसके लिए आवश्यक प्रोटीन माईटोकाँडिया के
कृष्टि में उपस्थित रहते हैं l इसके अलावा
माईटोकाँडिया ATP जंतुओं का संचय
भी करती है l अत: माईटोकाँडिया ऑक्सीकरण द्वारा जिव कोशिकाओं के लिए उर्जा का
उत्पादन करता है l इसी कारण इसे
कोशिका का उर्जा गृह भी कहते हैं l
३३. कठोर परिश्रम या अभ्यास करते समय साँस लेने की क्रिया पर
क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों ?
उतर- सामान्य अवस्था में मनुष्य की श्वसन दर 15-18 प्रति मिनट होती है , लेकिन कठोर व्यायाम के बाद यह दर बढ़कर 20-25 प्रति मिनट हो जाती है , क्योंकि व्यायाम के समय अधिक उर्जा आवश्यक होती
है इसलिए अधिक उर्जा के लिए अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है जिसके फलस्वरूप कठोर
व्याम के बाद श्वसन दर बढ़ जाती है l
34. मछली , मच्छर , केंचुआ और मनुष्य के मुख्य श्वसन अंगों के नाम
लिखें l
उतर- जिव के नाम श्वसन अंग
(i) मछली (i) गिलछिद्र
(ii) मच्छर (ii) वायु नलिकाएं
(iii) केंचुआ (iii) त्वचा द्वारा
(iv) मनुष्य (iv) फेफड़ें द्वारा
35. किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग
किया जाता है ?
उतर- जीवधारी के शारीर की प्रत्येक कोशिका कार्बनिक यौगिकों
द्वारा निर्मित होती है जिसमें कार्बन प्रमुख अवयव होता है l इन कोशिकाओं का जीवनकाल निश्चित होता है जिसके पश्चात् जीव
की मृत्यु हो जाती है l कुछ कोशिकाएं कुछ
निश्चित सीमा तक विकसित होती है तत्पश्चात वह विभाजित होती है l उसके जीवन काल में उसे सभी जैविक कार्यों को
करने के लिए उर्जा की आवश्यकता होती है जो उसे कार्बनिक यौगिकों के विघटन से प्राप्त होती है l ये कार्बनिक यौगिक भोजन का रूप धारण करते हैं l ये भोजन उर्जा प्राप्ति का बाह्र यौगिक बनाते
हैं l
स्वयंपोषी में कार्बन
डाईऑक्साइड वतावरण से प्राप्त होती है तथा जल जड़ों द्वारा भूमि से प्राप्त करते
हैं जिसके साथ खनिज भी अवशोषित कर लिए जाते हैं l ये पौधें हरे भागों में सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में
परस्पर संयोग करके जटिल कार्बनिक पदार्थ बनाते हैं l इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं l
36. पाचक एंजाइमों
का क्या कार्य है ?
उतर – पाचक एंजाइम्स पाचक रसों में उपस्थित होते हैं
जो पाचक ग्रंथियों से उत्पन्न होते हैं l प्रत्येक ग्रंथीं
का पाचक एंजाइम विशिष्ट प्रकार का होता है जिसका कार्य भी विशिष्ट हो सकता है l ये पाचक एंजाइम भोजन के विभिन्न पोषक तत्वों को
जटिल रूप से सरल रूप में परिवर्तित करके घुलनशील बनाते हैं l उदाहरणार्थ लार में उपस्थित सैलाइवारी एमाइलेज
कार्बोहाइड्रेट को माल्टोज शर्करा में परिवर्तित कर देता है l अग्नाशय अग्नासयिक रस का स्रवण करता है जिसमें ट्रिप्सिन
नामक एंजाइम होता है जो प्रोटीन का पाचन करता है l
37. हमारे आमाशय में
अम्ल की भूमिका क्या है ?
उतर- हमारे आमाशय में अम्ल की भूमिका निम्नलिखित है –
(i) हमारे आमाशय में
हाइड्रोक्लोरिक अम्ल जठर ग्रंथियों से स्रावित होता है और भोजन में अम्लीय माध्यम
प्रस्तुत
करता है l जिससे जठर रस का पेप्सिन नामक एंजाइम अम्लीय
माध्यम में कार्य कर सके l
(ii) यह भोजन में
उपस्थित रोगाणुओं को अक्रियाशील एवं नष्ट करता है l
(iii) यह भोजन को
शीघ्रता से नहीं पचाने देता है l
38. पचे हुए भोजन को
अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत को कैसे अभिकल्पित किया गया है ?
उतर – छुद्रांत में आतंरिक कला में अंगुली के आकृति
के प्रवर्ध होते हैं जो छुद्रांत की सतह को फैलाकर बड़ा कर देते हैं जिससे पचित
भोजन का अवशोसन अधिक मात्रा में हो सके l अंगूलाकृतियों
में रुधिर कोशिकाओं का जाल बिछा होता है जो पचे हुए भोजन का अवशोषण करती हैं l यह सभी कोशिकाओं में वितरित कर दिया जाता है l इन कोशिकाओं में भोजन का प्रयोग उर्जा प्राप्ति
के लिए किया जाता है तथा नए उतकों का निर्माण तथा टूटे हुए उतकों की मरम्मत हेतु
होता है l
39. स्तनधारी तथा
पक्षियों में ऑक्सिजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग करना क्यों आवश्यक है ?
उतर – स्तनधारी तथा पक्षियों का ह्रदय चार वेश्मी
होता है l ऊपर के दो कक्ष को दाहिना
तथा बायाँ निलय कहलाते हैं l दाहिना अलिंद में
शारीर से आनेवाला अशुद्ध रुधिर एकत्र होता है जबकि बाएँ अलिन्द में फेफड़ों से आने
वाला शुद्ध रक्त एकत्र होता है l इस प्रकार से
दोनों प्रकार का रुधिर ( शुद्ध तथा अशुद्ध ) परस्पर नहीं मिल
पाते l रुधिर के दोनों प्रकार से
न मिलने से ऑक्सीजन के वितरण पर किसी प्रकार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता l इस प्रकार का रुधिर संचरण विशेष रूप से उन
जंतुओं के लिए अत्यधिक लाभदायक होता है जिनमें दैनिक कार्यों के लिए अधिक उर्जा की
आवश्यकता होती है l उदहारणार्थ
स्तनधारी , पक्षी आदि l उर्जा की अधिक आवश्यकता शारीर के तापक्रम को सम बनाये रखने
के लिए होते हैं l
40. उत्सर्जी उत्पाद
से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं ?
उतर- उत्सर्जक पदार्थों से मुक्ति पाने के लिए पादप निम्नलिखित
तरीकों का उपयोग करते हैं –
(i) अनेकों उत्सर्जक
उत्पाद कोशिकाओं के धनियों में भंडारित रहते हैं l पादप कोशिकाओं में तुलनात्मक रूप से बड़ी धनियाँ होती हैं l
(ii) कुछ उत्सर्जक
उत्पाद पत्तियों में भंडारित रहते हैं l पतियों के गिरने
के साथ ये हट जाते हैं l
(iii) कुछ उत्सर्जक
उत्पाद, जैसे रेजिन या गम, विशेष रूप से निष्क्रिय पुराने जाइलम में
भंडारित रहते हैं l
(iv) कुछ उत्सर्जक
उत्पाद जैसे टेनिन, रेजिन, गम , छाल में भंडारित
रहते हैं l छाल के उतरने के साथ ये
हट जाते हैं l
(v) पादप कुछ
उत्सर्जक पदार्थों का उत्सर्जन जड़ों के द्वारा मृदा में भी करते हैं l
41. मूत्र बनाने की
मात्रा का नियम किस प्रकार होता है ?
उतर- मूत्र की मात्रा पानी के पुन: अवशोषण पर प्रमुख रूप से निर्भर करती है l
वृक्काणु नलिका
द्वारा पानी की मात्रा का पुन: अवशोषण
निम्नलिखित पर निर्भर करता है –
(i) शारीर में
अतिरिक्त पानी की कितनी मात्रा है जिसको निकलना है l जब शारीर के उत्तकों में पर्याप्त जल है ,
तब एक बड़ी मात्र
में तनु मूत्र का उत्सर्जन होता है l जब शारीर के
उतकों में जल की मात्रा कम है, तब सान्द्र मूत्र
की थोड़ी-सी मात्रा उत्सर्जित होती है l
(ii) कितने घुलनशील
उत्सर्जक , विशेषकर नाइट्रोजनयुक्त
उत्सर्जक जैसे यूरिया तथा यूरिक अम्ल तथा लवण आदि का
शारीर से उत्सर्जन होता है l
जब शारीर में घुलनशील
उत्सर्जक की अधिक मात्रा हो, तब उनके उत्सर्जन
के लिए जल की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है l अत: मूत्र की मात्रा
बढ़ जाती है l
42. हमारे शारीर में
वासा का पाचन कैसे होता है ? यह प्रक्रम कहाँ
होता है ?
उतर- हमारे शारीर में वासा का पाचन आहार नाल की छुद्रांत्र में
होता है l यकृत से निकालने वाला
पित्तरस, जो क्षारीय होता है, आए हुए भोजन के साथ मिलकर उसकी अम्लीयता को
निष्क्रिय करके उसे क्षारीय बना देता है l इसी क्षारीय
प्रकृति पर हि अग्नाश्यिक रस सक्रियता से कार्य करता है l अग्नाशायिक रस में तिन एंजाइम्स होते हैं – ट्रिप्सिन, एमिलोप्सिन तथा लाईपेज l
पित्तरस वासा को
सूक्ष्म कणों में तोड़ देता है l इस क्रिया को
इमल्सीकरण क्रिया कहते हैं तथा इसे
इमल्सीफाईड वासा कहते हैं l लाइपेज एंजाइम
इमल्सीफाईड वासा को वासिय अम्ल तथा ग्लिस्रौल में परिवर्तित कर देता है l
43. भोजन के पाचन
में लार की क्या भूमिका है ?
उतर- भोजन के पाचन में लार की भूमिका महत्वपूर्ण है l लार एक रस है जो तीन जोड़ी लाल ग्रंथियों से
मुँह में उत्पन्न होता है l लार में एमिलेस
नामक एक एंजाइम होता है जो मंड जटिल अणु को लार के साथ पूरी तरह मिला देता है l
लार के प्रमुख कार्य हैं –
(i) यह मुँह के खोल को साफ रखती है l
(ii) यह मुख खोल में चिकनाई पैदा करती है जिससे
चबाते समय रगड़ कम होती है l
(iii) यह भोजन को चिकना एवं
मुलायम बनती है l
(iv) यह भोजन को पचाने में भी मदद करती है l
(v) यह भोजन के स्वाद को बढाती है l
(vi) इसमें विधमान टायलिन नामक एंजाइम स्टार्च का
पाचन कर उसे माल्टोज में बदल देता है l
44. स्वपोषी पोषण के
लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी हैं और उनके
उत्पाद क्या हैं ?
उतर- स्वपोषी पोषण के लिए प्रकाश संश्लेषण आवश्यक है l हरे पौधें सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में क्लोरोफिल
नामक वर्णक से CO2 और जल के द्वारा
कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करते हैं l इस क्रिया में
ऑक्सीजन गैस बाहर निकलती है l
स्वपोषी पोषण के आवश्यक
परिस्थितियाँ हैं – सूर्य का प्रकाश
, क्लोरोफिल , कार्बन डाईऑक्साइड , और जल l इसके उपोत्पाद
आणविक ऑक्सीजन हैं l
45. किण्वन क्या है ? इसके महत्व का वर्णन कीजिए l
उतर- किण्वन वह क्रिया है, जिसमें सूक्ष्म
जिव ग्लूकोज या शर्करा का अपूर्ण विघटन कोशिका के बाहर करके CO2 तथा सरल कार्बनिक पदार्थ जैसे- इथाइल एल्कोहल , लैक्टिक एसिड , मैलिक एसिड , ऑक्जैलिक एसिड , साइट्रिक एसिड इत्यादि का निर्माण करते हैं , जिसके फलसवरूप कुछ उर्जा मुक्त होती है l
किण्वन की क्रिया के
निम्नलिखित महत्व है –
(i) इसकी सहायता से एल्कोहल, बीयर, आदि का उत्पादन
किया जाता है l
(ii) इस क्रिया के द्वारा कई महत्वपूर्ण कार्बनिक
यौगिकों जैसे एसिटिक अम्ल , ल्युटेरिक अम्ल
आदि का उत्पादन किया जाता है l
(iii) इस तकनीक का उपयोग बेकरी
तथा सिरका उधोग में किया जाता है l
(iv) जूट, सन् , तम्बाकू , चाय , चमडा इत्यादि
उधोग में इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है l
(v) इसका उपयोग रंग ,साबुन, प्लास्टिक, रेजिन, ईथर के निर्माण
में किया जाता है l
46. जीवधारियों के
लिए पोषण क्यों अनिवार्य है ?
उतर- जीवधारियों (जीवों ) को पोषण की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से होती
है –
(i) उर्जा उत्पादन के लिए – शारीर के जैविक
क्रियाओं के लिए उर्जा की आवश्यकता होती
है और जीवधारियों को यह उर्जा भोज्य पदार्थों के ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है l
(ii) शारीर की टूट-फुट की मरम्मत के
लिए – विभिन्न जैविक क्रियाओं
में शारीर के उतकों की टूट-फुट होती है, इनकी मरम्मत के लिए पोषण की आवश्यकता होती है l
(iii) वृद्धि के लिए – नये जीवद्रव्य से नई कोशिकाएँ बनती हैं l इनसे जीवों की वृद्धि होती है l
(iv) उपापचयी क्रियाओं के नियंत्रण के लिए – भोजन को पचाने तथा श्वसन आदि उपापचयी क्रियाओं
में कुछ निर्माणकारी और कुछ विनाशकारी क्रियाएँ होती रहती हैं l इन क्रियाओं के संपन्न होने में तथा इन
क्रियाओं पर नियंत्रण के लिए उर्जा की आवश्यकता होती है l
47. प्रकाश-संश्लेषण किसे कहते हैं ? इसका महत्व लिखिए l
उतर- प्रकाश-संश्लेषण हरे
पौधे सूर्य के प्रकाश द्वारा क्लोरोफिल नामक वर्णक की उपस्थिति में CO2 और जल के द्वारा
कार्बोहाइड्रेट (भोज्य पदार्थ ) का निर्माण करते हैं और ऑक्सीजन गैस बाहर
निकालते हैं l इस क्रिया को
प्रकाश संश्लेषण कहते हैं l
महत्व –
(i) इस प्रक्रिया के
द्वारा भोजन का निर्माण होता है जिससे मनुष्य तथा अन्य जिव-जंतुओं का पोषण
होता है l
(ii) इस प्रक्रिया में
ऑक्सीजन का निर्माण होता है, जो की जीवन के
लिए अत्यावश्यक है l जीव श्वसन द्वारा
ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं जिससे भोजन का आक्सीकरण
होकर शारीर के लिए उर्जा प्राप्त होती है l
(iii) इस क्रिया में CO2 ली जाती है तथा निकली
जाती है जिससे पर्यावरण में O2 एवं CO2 की मात्रा संतुलित रहती
है l
(iv) कार्बन
डाईऑक्साइड के नियमन से प्रदुषण दूर होता है l
(v) प्रकाश-संश्लेषण के ही उत्पाद, खनिज, तेल, पेट्रोलियम कोयला आदि हैं, जो करोड़ों वर्ष पूर्व पौधों द्वारा संग्रहित
किये गए थ l
48. होमिओस्टेसिस को
समझाइए l
उतर- मूत्र निर्माण तथा उत्सर्जी पदार्थों को शारीर से बाहर
निकालने के अतिरिक्त वृक्क शारीर में जल, अम्ल, क्षार, तथा लवणों का
संतुलन बनाये रखने में शारीर से बाहर निकालता है l इसी प्रकार वृक्क के कारण रुधिर में लवण सदैव एक निश्चित
मात्र में ही मिलते हैं l अमोनिया रुधिर के
H+ की अधिकता को कम करके
रुधिर में अम्ल-क्षार संतुलन
बनाने में सहायता देती है l वृक्कों द्वारा
ही विष , दवाइयां आदि हानिकारक
पदार्थों का भी शारीर से विसर्जन होता है l अत: वह समस्त क्रियाएं जिनके द्वारा शारीर में एक
स्थाई अवस्था बनी रहती है उसको होमिओस्टेसिस कहते हैं l
49. निम्नलिखित
श्वासनांगों पर टिप्पणी लिखिए l
(i) लेरिंक्स (ii) ट्रैकिया (iii) ब्रिंकाई (iv) फेफड़े
उतर- (i) लेरिंक्स – यह श्वास नली का
वह भाग है जहाँ ग्रसनी ट्रैकिया से जुड़ता है l इसके उपर इपिग्लाटिस नामक एक उपस्थित होती है जो भोजन
निगलते समय ग्लौटिस को बंद कर देती है l इसका मुख्य कार्य
ध्वनी उत्पादन है l
(ii) ट्रैकिया – यह लगभग 12 सेमि० लम्बी उपस्थि की एक नली है जो हवा को
लेरिंक्स से ब्रांक्स तक लाती है
(iii) ब्रांकाई – ट्रैकिया वक्षीय गुफा में जाकर दो शाखाओं
में बाँट जाते हैं l जिन्हें ब्रंकाई कहते हैं l इससे होकर वायु फेफड़े में पहुंचती है l
(iv) फेफड़े – प्रत्येक
ब्रांक्स अपनी तरफ के फेफड़ों में खुलते हैं l ये ब्रांकस फेफड़े में प्रवेश करने के बाद अनेक पतली-पतली शाखाओं में बाँट जाते हैं l ये शाखाएं पुन: छोटे-छोटे कोष्टकों
में बाँट जाती हैं, जिन्हें कुपिका
कहते हैं l इसी के लिए पतली एवं
दिवार द्वारा वायु का आदान प्रदान होता है l
50. मनुष्य में
श्वास लेने की क्रिया विधि के प्रमुख दो आधारों का विवरण दीजिए l
उतर- श्वासोच्छवास की क्रिया में गैसिये आदान-प्रदान के लिए वायुमंडलीय वायु को फेफड़ों के
अन्दर लिया जाता है तथा श्वसन के पश्चात् फेफड़े की वायु को शारीर से बाहर किया
जाता है l मनुष्य के श्वासोच्छवास
की क्रिया-विधि दो चरणों में पूरी
होती है- (i) निश्वसन- वायुमंडलीय या वतावरणीय वायु फेफड़े में भरने की
क्रिया को निश्वसन कहते हैं l इस क्रिया में
मस्तिष्क के श्वसन केंद्र से प्राप्त उधिपन के कारण बाह्र इंटरकॉस्टल पेशियाँ
संकुचित होती हैं , जिसमें पसलियाँ
बाहर की ओर झुक जाती हैं , इसी समय डायफ्राम
की अरिय पेशियाँ संकुचित तथा उदर पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं, जिसमें वक्षीय गुहा का आयतन बढ़ने के साथ फेफड़े का आयतन भी
बढ़ जाता है , फलत: श्वसन पथ से वायु अन्दर आकार फेफड़े में भर जाती है l
(ii) नि:श्वसन – वह क्रिया है जिसके द्वारा फेफड़े की वायु को
वायु पथ द्वारा शारीर से बाहर किया जाता है l इस क्रिया में मस्तिष्क के श्वसन केंद्र की उधिपन के कारण
अंत:इंटरकॉस्टल पेशियाँ
संकुचित , डायफ्राम की पेशियाँ
शिथिल तथा उदार गुहा की पेशियाँ संकुचित होती हैं , फलत: वक्षीय गुहा के
साथ फेफड़े का आयतन कम हो जाता है और फेफड़े की वायु श्वसन पथ से होते हुए बाहर निकल
जाती है l
51. मुख गुहा में
पाचन क्रिया समझाइए l
उतर- मुख गुहा में पाचन क्रिया – मुख गुहा में
भोजन को दाँतों द्वारा चबाया और पिसा जाता है l चबाते समय भोजन से लार अच्छी तरह मिलकर उसे लुग्दी में बदल
देता है l
अब लार में उपस्थित
एन्जईमों द्वारा भोजन का निम्न प्रकार पाचन होता है –
(i) म्युसिन – यह भोजन को
चिकना बनता है जिससे वह आसानी से सरक कर आहार नाल में बढ़ जाता है l
(ii) टायलिन – यह भोजन में
उपस्थित मंड (स्टार्च ) को माल्टोज शर्करा में बदल देता है l यदि टायलिन बहुत देर तक क्रिया करते रहे तो
माल्टोज ग्लूकोज में बदल जाता है l इसलिए अधिक देर
तक भोजन चबाने से मीठा लगाने लगता है l
(iii) लाइसोजाइम – यह भोजन में
उपस्थित जीवाणुओं की कोशिकभिती के पॉलिसेकेराइड्स को पचाकर जीवाणुओं को मारता है l
52. जंतुओं में
गैसीय आदान-प्रदान की विभिन्न
विधियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए l
उतर – जंतुओं में गैसीय आदान-प्रदान
निम्नलिखित विधियों द्वारा होता है –
(i) सामान्य कोशिकाओं में सतह द्वारा – इसमें प्रक्रम श्वसन एक कोशिकीय जीवों अमीबा , पैरामिशियम , स्पन्जों तथा सीलेंट्रेटम में होता है l इसमें जीव की कोशिकाएं सीधे जल के संपर्क में
रहती है तथा सामान्य विसरण द्वारा O2 को ग्रहण तथा
त्यागती है l
(ii) त्वचा द्वारा – ऐनेलिडा ( केचुआं , जोंक , नेरिंज ) ऐम्फिविया ( मेंढक ) संघ के जंतुओं की
त्वचा में कोशिकाओं का जाल फैला होता है , जिसकी सहायता से
त्वचा गैसीय आदान प्रदान करती है l
(iii) श्वसन नालियों द्वारा – आर्थोपोडा समूह में जंतुओं जैसे कीटों , कॉकरोच , बिच्छु आदि में
शवसन ( गैसीय आदान प्रदान एवं
परिवहन ) पतली-पतली नलिकाओं द्वारा होता है l जिन्हें ट्रैकिया कहते हैं ( श्वसन नलिका ) कहते हैं l ये पुरे शारीर
में एक जल-सा बनती है, जिसे ट्रेकियल सिस्टम कहते हैं l
(iv) गिल्स द्वारा – जिकसित जलीय
जीवों जैसे मछलियों , झींगों , मोलास्को , इकाइकोडमेंट्स , मेढक के
टेड्पिलों आदि में गैसीय आदान प्रदान गिल्स के द्वारा होता है l
(v) फेफड़ों द्वारा – उभयचरों , स्तानियो, सहित कोर्डेटा के सभी जीवों में गैसीय आदान-प्रदान फेफड़ों द्वारा होता है l फेफड़ों द्वारा होनेवाली श्वसन क्रिया को
फुफ्फुसी श्वसन कहते हैं l इनमें जीवों में
एक विकसित श्वसन तंत्र पाया जाता है जिसके द्वारा वायु को फेफड़ों तक लाया जाता है
तथा उससे बाहर निकाला जाता है l इसतरह फेफड़ों की सतह द्वारा गैसों का आदान-प्रदान होता है l
53. प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं ? स्पष्ट कीजिए l
उतर- प्रकाश-संश्लेषण की
क्रिया को निम्न कारक प्रवाहित करते हैं –
(i) प्रकाश – प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया सूर्य के प्रकाश में होती
है , इसलिए प्रकाश का प्रकार
तथा उसकी तीव्रता इस क्रिया को प्रभावित करती हैं l प्रकाश की लाल एवं नीली किरणों तथा 100 फुट कैंडल से 3000 फुट कैंडल तक
प्रकाश तीव्रता प्रकाश-संश्लेषण की दर
को बढाती है जबकि इसमें उच्च तीव्रता पर यह क्रिया रुक जाती है l
(ii) CO2 – वातावरण में CO2 की मात्रा 0.03% होती है l यदि एक सीमा तक CO2 की मात्रा बढाई जाये तो प्रकाश-संश्लेषण दर भी बढती है लेकिन अधिक होने से
घटने लगती है l
(iii) तापमान – प्रकाश-संश्लेषण के लिए 25-35०C का तापक्रम सबसे उपयुक्त होता है l इससे अधिक या कम होने पर दर घटती-बढाती रहती है l
(iv) जल – इस क्रिया के
लिए जल एक महत्वपूर्ण यौगिक है l जल की कमी होने
से प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया
प्रभावित होती है क्योंकि जीवद्रव्य की सक्रियता घाट जाती है , स्टोमाटा बंद हो जाते हैं और प्रकाश-संश्लेषण दर घाट जाती है l
(v) ऑक्सीजन – प्रत्यक्ष रूप
से ऑक्सीजन की सांद्रता से प्रकाश-संश्लेषण की
क्रिया प्रभावित नहीं होती है लेकिन यह पाया गया है कि वायुमंडल में O2 की मात्रा बढ़ने से
प्रकाश-संश्लेषण की दर घटती है l
54. पाचन में पित्त
रस का महत्व लिखिए l
अथवा , पित्त क्या है ? मनुष्य के पाचन में इसका क्या महत्व है ?
उतर – पित्त रस प्रत्यक्ष रूप से भोजन के पाचन में
भाग नहीं लेता है , लेकिन इसमें
विभिन्न प्रकार के रसायन होते हैं जो पाचन क्रिया में सहायता करते हैं l
इसतरह पित्त रस
निम्नलिखित महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है –
(i) यह आमसय से आए भोजन के अम्लीय प्रभाव को क्षारीय
बनता है l
(ii) यह जीवाणुओं को मारता है तथा इसकी उपस्थिति में
ही अग्नाशयी रस कार्य करता है l
(iii) यह आंत की दीवार को
क्रमकुचन के लिए उत्तेजित करता है l
(iv) यह वासा में घुलनशील विटामिनों के अवशोषण में
सहायक होता है l
(v) यह कुछ विषैले पदार्थों जैसे – कोलेस्ट्रोल और धातुओं के उत्सर्जन में सहायक
होता है l
2. नियंत्रण एवं समन्वय
1. किन्ही चार पादप
हार्मोन के नाम लिखें l
उतर- चार पादप हार्मोन के नाम निम्नलिखित हैं –
(i) ऑक्सीजन (ii) जिब्रलिन (iii) सायटोकाइनिन (iv) एब्सेसिक एसिड l
2. पिट्यूटरी ग्रंथि
द्वारा स्रावित तिन हार्मोन के नाम बताएं l
उतर- पिट्यूटरी ग्रंथि मध्य मष्तिष्क के निचले भाग
में स्थित होती है l यह निम्न हार्मोन
को स्रावित करती है –
(i) ट्रोपिक हार्मोन (ii) प्रोलैटिन (iii) ऑक्सीटोसिन (iv) वैसोप्रैसिन
3. साइटोकाइनिन के मुख्य
कार्य क्या हैं ?
उतर- ये कोशिका विभाजन को उधिपन करते हैं l ये जीर्णत को रोकते हैं और पर्णहरित को नष्ट
नहीं होने देते हैं , कोशिका में पोषण
गति को बढ़ाते हैं और वृद्धि और परिवर्धन को नियंत्रित करते हैं l
4. हार्मोन क्या है ?
उतर- ये अंत:स्रावी ग्रंथि
द्वारा स्त्रावित पदार्थ हैं जो वृद्धि , परिवर्धन और अन्य
क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं l विशेष कार्यों के
लिए विशेष हार्मोन की आवश्यकता होती हैं l
5. पादप हार्मोन
क्या है ?
उतर – पादप हार्मोन कार्बनिक यौगिक हैं जो पौधें को
किसी भाग में बहुत कम सांद्रता में उत्पन्न होते हैं और पौधें के दुसरे भागों में
स्थानांतरित कर दिए जाते हैं l ये किसी विशिष्ट
कार्यिकी प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं l
6. होमियोस्टेसिस
क्या है ?
उतर- जीवों के शारीर में सभी क्रियाओं को सुचारू रूप
से करने के लिए , उनका भीतरी
वातावरण बाहरी परिवर्तनों को सहने का प्रयत्न करता है l इस अवस्था को बनाये रखने की क्षमता होमियोस्टेसिस कहलाती है
l
7. ऑक्सिन क्या है
और पौधों में ये कहाँ उत्पन्न होते हैं ?
उतर- ये पादप हार्मोन का समूह होते हैं जो प्राकृतिक
रूप से पौधों में उत्पन्न होते हैं l ये पौधों के उपरी
भागों तथा पतियों के प्रिमोर्डिया तथा वृद्धिकारक बीजों में उत्पन्न होते हैं जो
अमीनों अम्लों से बनाते हैं l
8. कार्टिसोल क्या
है ?
उतर- कार्टिसोल का दूसरा नाम ग्लुकोकार्टिकोईडस है l ये कार्बोहाइड्रेट उपापचय को नियंत्रित करते
हैं और इनकी क्रियाएँ एंटी इन्क्लेमिटरी और एंटी एलर्जिक है l
9. जिबरेलिन की खोज
किस प्रकार की गई ?
उतर – सन् 1926 में कुरासोवा ने
जिब्रेला फ्यूजी कुरोई से इसकी खोज की थी l यह पौधों की जड़ों
, नयी पतियों और भ्रूण कोष
में उत्पन्न होता है l बाद में इसे अम्ल
के रूप में कवक से तैयार किया गया l
10. छुई-मुई पादप की गति
तथा हमारी टांग में होनेवाली गति के तरीके में क्या अंतर है ?
उतर – छुई-मुई पादप स्पर्स
करते ही पत्तियों को झुककर या बंद कर संवेदनशीलता का परिचय दे देती है l पादप हार्मोन के प्रभाव के कारण पादप कोशिकाएँ
यह परिवर्तित कर देती है l जबकि हमारी टांग
में होने वाली एच्छिक क्रिया का परिणाम है जो अनुमस्तिष्क के द्वारा संचालित होती
है l इसमें तंत्रिका नियंत्रण
का सहयोग प्राप्त किया जाता है l
11. पिट्यूटरी ग्रंथि
को मास्टर ग्रंथि क्यों समझा जाता है ?
उतर- पिट्यूटरी ग्रंथि, लाल भूरे रंग की, सेम के बिज के
आकार की होती है , जो मस्तिष्क के
आधार के पास होती है l ये आप्टिक
कोएज्मा के पास होती है जहाँ से तंत्रिकायें आँखों में जाती हैं l यह ग्रंथि अन्य ग्रंथियों को भी नियंत्रित करती
हैं, इसी कारण इसे मास्टर
ग्रंथि कहा जाता है l
12. पादप में रसायनिक
समन्वय किस प्रकार होता है ?
उतर- पादपों में रासायनिक समन्वय पादप हारमोनों के
कारण होता है l पादप विशिष्ट
हार्मोनो के कारण होता है l पादप विशिष्ट
हर्मोनों को उत्पन्न करते हैं जो उसके विशेष भागों को प्रभावित करते हैं l पादपों में प्ररोह प्रकाश के आने के दिशा के ओर
ही बढ़ता है l गुरुत्वानुवर्तन जड़ों को
निचे की ओर मुड़कर अनुक्रिया करता है l इसी प्रकार
जलानुवर्तन और रासयानावर्तन
होता है l पराग नलिका का बीजांड की ओर वृद्धि करना रसायनानुवर्तन
का उदहारण है l
13. प्रमस्तिष्क या
मध्य मस्तिष्क के कार्यों का वर्णन करें l
उतर- मनुष्य का मस्तिष्क तिन भागों में बंटा होता है
–
(i) अग्र मस्तिष्क (ii) मध्य मस्तिष्क (iii) पश्च मस्तिष्क
मध्य मस्तिष्क
में सैरिब्रम और ओल फैक्ट्री पाली है l सैरीब्रम दो
भंगों में बंटा होता है जिसे अर्द्ध गोलार्द्ध कहते हैं l प्रमस्तिष्क में
संवेदी क्षेत्र होता है जहाँ पर संवेदी अंगों से सूचनायें प्राप्त की जाती हैं l इस भाग में प्रत्येक के संवेग के लिए और उसके
उत्तर के लिए काफी क्षेत्र होता है l इसमें स्मृति , ग्राही , स्पर्श , गंध आदि के लिए गोलार्द्ध पाए जाते हैं l कार्नियन तंत्रिकाएं मस्तिष्क के इसी भाग से
निकलती है l
14. प्रतिवर्ती
क्रिया में मस्तिष्क की क्या भूमिका है ?
उतर – मध्य मस्तिष्क, सिर, गर्दन और धड की
प्रतिवर्ती गतियों को नियंत्रित करता है l यह नेत्र पेशियों
की गति, पुतली के आकार में
परिवर्तन और नेत्र लेंस के आकार में परिवर्तन को भी नियंत्रित करता है l पश्य मस्तिष्क का भाग मैडुला आब्लांगेटा ह्रदय
स्पंदन , साँस लेना , रक्त दाब पसीना , खाँसना, छिकना, वामन को भी नियंत्रित करता है l
15. पादप हार्मोन
क्या हैं ?
उतर- वे विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थ जो पौधों
में वृद्धि और विभेदन संबंधी क्रियाओं पर नियंत्रण करते हैं उन्हें पादप हार्मोन
कहते हैं l पादप हार्मोन अनेक प्रकार
के होते हैं , जैसे – ऑक्सीन , इथाइलिन, जिब्बेरेलिन , साइटोकाइनिन, तथा, एबसिसिक अम्ल l
16. जलानुवर्तन
दर्शाने के लिए एक प्रयोग की अभिकल्पना कीजिए l
उतर – लकड़ी का बना एक लम्बा डिब्बा लें l इसमें मिट्टी और खाद का मिश्रण भरें l इसके एक सिरे पर एक पौधा लगाएँ l डिब्बे में पौधे के विपरीत दिशा में एक किप
मिट्टी में गाड दें l पौधे को उसी किप
के द्वारा प्रतिदिन पानी दें l लगभग एक सप्ताह
के बाद पौधे के निकट की मिट्टी हटाकर ध्यान से देखें l पौधे की जड़ों की वृद्धि उसी दिशा में दिखाई देगी जिस दिशा
में किप के द्वारा पौधे की सिचाई की जाती है l
17. जंतुओं में
रासायनिक समन्वय कैसे होता है ?
उतर – पौधें में अंत:स्रावी ग्रंथियां
विशेष रसायनों को उत्पन्न करती हैं वे रसायन या हार्मोन जंतुओं को सूचनाएँ संचरित
करने के साधन के रूप में प्रयुक्त होते हैं l अधिवृक्क ग्रंथि से स्रावित एड्रीनलीन हार्मोन सीधा रुधिर
में स्रावित होता है और शारीर के बिविन्न भागों तक पहुँच जाता है l उतकों में विशिष्ट गुण होते हैं जो अपने लिए
आवश्यक हारमोनों को पहचान कर उनका उपयोग बाहरी या भीतरी स्तर पर करते हैं l विशिष्टीकृत कार्यों को करने वाले अंगों से
समन्वय कर वे हार्मोन अपना विशिष्ट प्रभाव दिखा देते हैं l
18. जब एड्रीनलीन
रुधिर में स्रावित होती है तो हमारे शारीर में क्या अनुक्रिया होती है ?
उतर- एड्रीनलीन को ‘ आपातकाल हार्मोन’ भी कहते हैं l जब कोई व्यक्ति भय या तनाव के रूप में होता है
तब शारीर स्वयं एड्रिलिन हार्मोन को बड़ी मात्रा में स्रावित कर देता है ताकि
व्यक्ति आपातकाल का सामना कर सके l इससे ह्रदय की
धड़कन बढ़ जाती है ताकि हमारी पेशियों को अधिक ऑक्सीजन की आपूर्ति हो सके l पाचन तंत्र तथा त्वचा में रुधिर की आपूर्ति कम
हो जाती है इन अंगों की चोटी धमनियों के आसपास की पेशी सिकुड़ जाती है यह रुधिर की
दिशा हमारी कंकाल पेशियों की ओर कर देती है l डायफ्राम तथा पसलियों की पेशी के संकुचन से साँस तेज चलने
लगती है l ये सभी अनुक्रियायें मिलकर
जंतु शारीर को स्थिति से निपटने के लिए तैयार करती हैं l
19. दो तंत्रिका
कोशिकाओं के मध्य अन्तर्ग्रथन में क्या होता है ?
उतर- अन्तर्ग्रथन पर एक तांत्रिक कोशिका के
तंत्रिकाक्ष के सिरे पर रसायनिक पदार्थ उत्पन्न होता है जोकि दुसरे तंत्रिकोशिकाओं
के द्रुमिकाओं से होता हुआ दुसरे तंत्रिकोशिकाओं में पहुँचता है l अन्तर्ग्रथन से सुनिश्चित होता है की तंत्रिका
आवेग एक ही दिशा में संचरित होता है l
20. हमारे शारीर में
ग्राही का क्या कार्य है ? एसी स्थिति पर विचार करें जहाँ ग्राही उचित प्रकार से कार्य
नहीं कर रहे हों l क्या समस्याएँ उत्पन्न हो
सकती हैं ?
उतर- ग्राही वे अंग
होते हैं जो पर्यावरण से सूचना एकत्र करते हैं l यदि ग्राही उचित प्रकार से सूचना एकत्र नहीं कर पा रहा है
तो सूचना मेरुरज्जु तथा मस्तिष्क में उचित प्रकार से नहीं पहुँचेगी, जिसके
परिणामस्वरूप वे शारीर के प्रभावित अंग की
सुरक्षा नहीं कर पाएंगें इससे प्रभावित अंग या जिव की सुरक्षा नहीं हो
पायेगी l
21. पश्य मस्तिष्क के
किसी एक भाग के कार्य बताइए l
उतर- पश्य मस्तिष्क के
तीन कार्य होते हैं - अनुमश्तिश्क , पोन्स, और मस्तिष्क गुच्छ l
मैडूला आबलागेटा या मस्तिष्क शारीर की
अनैच्छि क्रियाओं जैसे- स्वसन , ह्रदय स्पंदन , परिसंचरण , खांसी , छिकाना और
उल्टी आदि क्रियाओं को नियंत्रित करता है l
22. मधुमेह के कुछ
रोगियों की चिकित्सा इंसुलिन का इंजेक्शन देकर क्यों की जाती है l
उतर- इंसुलिन वह हरमों है
जो अगनाशय में उत्पन्न होता है यह रुधिर में शर्करा के स्तर बढ़ जाता है जिस कारण
शारीर पर अनेक पभाव पड़ते हैं l इसलिए मधुमेह के कुछ रोगियों को चिकित्सक इंसुलिन
का इंजेक्सन देते हैं l इससे उनके रुधिर में शर्करा का स्तर नियंत्रित रहता है l
२३. स्वायत्त तंत्रिका
तंत्र क्या है ?
उतर – शारीर की विभिन्न
सामान्य क्रियाओं को नियंत्रित करने के अतिरिक्त शरीर की बहुत सी आंतरिक क्रियाओं जैसे – ह्रदय , रुधिर, वाहिकाओं और
ग्रंथियाँ आदि तंत्रिकाओं के एक विशेष वर्ग द्वारा नियंत्रित किये जाते हैं, जिसे
स्वायत्त तंत्रिका तंत्र कहते हैं l यह मुख्यत: अन्दर के अंगों जैसे ह्रदय, रक्त,
वाहिनिओं और ग्रंथियों को नियंत्रित और कार्यबध्द
करता है l यह मुलायम पेशियों और गर्भाशय को भी नियंत्रित करता है l
24. टैस्टोस्टिरोन और
इस्ट्रोजन के कार्य बताएँ l
उतर – टैस्टोस्टिरोन – यह
हर्मोन द्वारा स्रावित होता है l
इसके मुख्य कार्य हैं –
(i) नर के जनन अंगो को नियंत्रित करता है l
(ii) यह पौरुष विकाश का नियंत्रण करता है l
इसमें मूछें, दाढ़ी आती हैं और आवाज भरी हो जाता है l
इस्ट्रोजन – यह मादा में
निकलने वाला हार्मोन है l
इसके मुख्य कार्य हैं –
(i)
यह मादा जनांगों को नियंत्रित करते हैं l
(ii)
मादाओं में द्वितीय लैंगिक लक्षणों को नियंत्रित करता है
जैसे स्तर वृद्धि, अंडवाहिनियाँ , योनी तथा लिबिया आदि का विकास होता है l नितम्ब
भारी हो जाते हैं और बालों का आना और आवाज बदल जाती हैं l
25. आयोडीन युक्त नमक
खाने की सलाह क्यों दी जाती है ?
उतर- अवटुग्रंथि को
थायरौक्सिन हरमों बनाने के लिए आयोडीन आवश्यक होता है l हमारे शरीर में प्रोटीन और
वासा के उपापचय की थारौक्सिन कार्बोहाइड्रेट नियंत्रित करता है l यह वृद्धि के
संतुलन के लिए आवश्यक होता है l यदि हमारे भोजन में आयोडीन की कमी रहेगी तो हम
गायटर से ग्रसित हो सकते हैं l इस बीमारी का लक्षण फूली हुई गर्दन या बहार की और
उभरे हुए नेत्र-गोलक हो सकते हैं l इस रोग से बचने तथा आयोडीन की कमी दूर करने के
लिए आयोडीन युक्त नमक उपयोग करने की सलाह दी जाती है l
२६. एक जिव में नियंत्रण
एवं समन्वय तंत्र की क्या आवश्यकता है ?
उतर – बहुकोशाकिय जीवों
की संरचना बहुत जटिल होती है l उनके शारीर के विभिन्न बाहरी और भीतरी अंगों की
विशिष्ट कार्यप्रणालियों और गतिविधियों में ताल-मेल की परम आवश्यकता होती है l
अंगों के नियंत्रण और समन्वय के द्वारा ही उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकती है l
जीवों की जटिल प्रकृति के कारण ही वे उन तंत्रों का उपयोग करते हैं जो नियंत्रण
एवं समन्वय कार्य करते हैं l विशिष्टि कारण ऊतक का उपयोग नियंत्रण और समन्वय में
सहायक सिद्ध होता है l
27. मनुष्य में केन्द्रीय
तंत्रिका तंत्र का वर्णन करें l
उतर – मनुष्य में
केंद्रीय तंत्रिका तंत्र बहुत विकशित होता है l इसमें मस्तिष्क, मेरुरज्जु तथा
सम्बंधित तंत्रिकाएं होती हैं l
मस्तिष्क तंत्रिका तंत्र
का मुख्य केंद्र होता है और शारीर के सभी अंगों का समन्वयन करता है l यह खोपड़ी में
रहता है l मेरुरज्जु, रीढ़ की हड्डी के बिच में स्थित होता है l तंत्रिकाएं महीन
धागे के आकार की संरचनाएं होती हैं जो मस्तिष्क और मेरुरज्जु से जुडी होती हैं l
कार्य के आधार पर
तंत्रिकाओं को दो भागों में बांटा गया है l
(i)
संवेदी तंत्रिकाएँ
(ii)
प्रेरक तंत्रिकाएँ
संवेदी तंत्रिकाएँ वे होती
हैं जो उद्दीपन को प्रभावी भागों से मस्तिष्क और मेरुरज्जु को ले जाती हैं और
प्रेरक तंत्रिकाएँ वे होती हैं जो उद्दीपन का उत्तर प्रभावित अंगों तक ले जाती हैं
l
२८. नर तथा मादा जनन
हारमोनों के नाम एवं कार्य लिखें l
उतर – नर हार्मोन
टेस्टोंरोन – कार्य : शुक्राणुओं का निर्माण l
मादा हार्मोन – एस्ट्रोजन
एवं प्रोजेक्टरोन l
एस्ट्रोजन के कार्य –
द्वितीय लैंगिक लक्षणों का विकाश एवं जनन शक्ति का विकास l
प्रोजेस्ट्रोन के कार्य –
भ्रूण के विकाश में सहायक , भ्रूण के पोषण में सहायक l
29. छुई मुई के पत्तियों
की गति , प्रकाश की ओर प्ररोह की गति से किस प्रकार भिन्न है ?
उतर – छुई-मुई पौधों पर
प्रकाशनुवर्तन गति का प्रभाव पड़ता है l पौधे का प्ररोह बहुत धीमी गति से प्रकाश
आने की दिशा में वृद्धि करते हैं लेकिन इसके पत्ते स्पर्श की अनुक्रिया के प्रति
बहुत ही संवेदनशील है l स्पर्श होने की सूचना इसके विभिन्न भागों को बहुत तेजी से
प्राप्त हो जाती है l पादप इस सूचना को एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक संचारित करने
के लिए विधुत-रसायन साधन का उपयोग करते हैं l उसमें सूचनाओं के चालन के लिए कोई
विशिष्टि कृत ऊतक नहीं होते इसलिए वे जल की मात्रा में परिवर्तन करके अपने पत्तों
को सिकुड़ कर उनका आकार बदल देते हैं l
जीव जनन कैसे करते हैं
- एक-कोशिक एवं बहुकोशिक
जीवों की जनन पद्धति में क्या अंतर है ?
उतर- एककोशिक प्रायः विखंडन मुकुलन,
पुनरुदभवन , बहुविखंडन आदि विधियों से जनन करते हैं l उनमें केवल एक ही कोशिका होती है l वे सरलता से कोशिका विभाजन के द्वारा तेजी से
जनन कर सकते हैं l बहु कोशिक जीवो में जनन क्रिया जटिल होती है और
वह मुख्य रूप से लैंगिक जनन क्रिया ही होती है l
2. एक-लिंगी और द्वि-लिंगी जीव की परिभाषा एक-एक उदाहरण के साथ दीजिए l
उतर - एकलिंगी जिव
- जिस जिव में नर और मादा अलग-अलग होते हैं उसे एकलिंगी जिव कहते हैं l उदहारण मनुष्य l
द्विलिंगी जिव -
जिस जिव में नर और मादा दोनों उपस्थित होते हैं उसे द्विलिंगी जिव कहते हैं l उदहारण - केचुआ l
३. कंडोम क्या है ?
उतर - यह परिवार
नियोजन का एक साधन है l पुरुष द्वारा इसका उपयोग करने से शुक्राणु माता
के गर्भाशय में नहीं पहुंच पाते जिससे गर्भधारण की कोई संभावना नहीं होती l
4. गर्भनिरोधक युक्तियां अपनाने के क्या कारण हो
सकते हैं ?
उतर- गर्भ निरोधक
युक्तियां मुख्य रूप से गर्भ रोकने के लिए अपनाई जाती हैं l इनसे बच्चों की आयु में अंतर बढ़ाने में भी सहयोग लिया जा सकता है l कंडोम के प्रयोग से यौन संबंधी कुछ रोगों के संक्रमण से भी बचा जा सकता है l
5. जंतु परागण क्या है ?
उतर - जंतु परागण
में किट, गिलहरी , चिड़िया , बन्दर व हाथी सहायक होते हैं l परागण जंतुओं के पैरों में चिपक जाते हैं तथा दुसरे पुष्पों तक पहुँच जाते हैं
l
6. जनन किसी स्पीशीज की समष्टि के स्थायित्व में किस प्रकार सहायक है ?
उतर - किसी भी
स्पीशीज की समष्टि के स्थायित्व में जनन और मृत्यु का बराबर का महत्त्व है l यदि जनन और मृत्यु दर में लगभग बराबरी की दर हो तो स्थायित्व बना रहता है l एक समष्टि में जन्म दर और मृत्यु दर ही उसके आधार का निर्धारण करते हैं l
7. नर तथा मादा जनन हार्मोनों के नाम तथा कार्य
लिखें l
उतर - नर हार्मोन के नाम -
टेस्टोस्टेरोन
टेस्टोस्टेरोन के कार्य- शुक्राणुओं का निर्माण l
मादा हार्मोन के नाम - एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रोन l
एस्ट्रोजन के कार्य - द्वितीय लैंगिक लक्षणों का विकास एवं जनन शक्ति का विकास l
प्रोजेस्ट्रोन के कार्य - भ्रूण के विकास में सहायक, भ्रूण के पोषण में सहायक l
8. पैरामीशियम में अलैंगिक जनन का संक्षिप्त वर्णन
करें l
उतर - पैरामीशियम में अलैंगिक जनन -
यह एमैटोसिस
द्वारा होता है तथा कोई युग्मक भाग नहीं लेते हैं पैरामीशियम में लैंगिक जनन
अनुप्रस्थ विखंडन द्वारा होता है यह अनुकूल दशाओं में होता है एक पैरामीशियम से दो
पुत्री पैरामीशियम बन
जाते हैं l
9. वर्षा होने के समय मक्का के परागण क्रिया में
क्या-क्या प्रभाव पड़ सकता है ?
उतर - मक्का के
पौधों में वायु परागण होता है l मक्का के पौधों में नर पुष्प एकमंजुरी के रूप में
शिखर पर लगते हैं l वर्षा के समय परागकण भींग जायेंगे, जिससे वे वर्त्तिकाग्र तक नहीं पहुँच पाएंगे l
10. वीजाणु द्वारा जनन से जिव किस प्रकार लाभान्वित
होता है ?
उतर - बीजाणु
द्वारा जनन से जीव लाभान्वित होता है क्योंकि बीजाणु के चरों ओर एक मोटी भित्ति
होती है जो प्रतिकूल परिस्थितियों में उसकी रक्षा करती है l और नाम सतह के संपर्क में आने पर वह वृद्धि करने लगती है l
11. DNA प्रतिकृति का प्रजनन में
क्या महत्त्व है ?
उतर - सुक्राशय एवं
प्रोस्टेट ग्रंथि अपना स्राव शुक्र वाहिका में डालते हैं जिससे शुक्राणु एक तरल
माध्यम में आ जाते हैं l इसके कारण इनका रूपांतरण सरलता से होता है l साथ ही यह स्राव उन्हें
पोषण भी प्रदान करता है l
12. DNA की प्रतिकृति बनाना जनन
के लिए आवश्यक क्यों है ?
उतर - डी.एन.ए गुणसूत्रों
पर स्थित होते हैं जो कोशिका के केन्द्रक में उपस्थित होते हैं l ये जनन की विशेष सूचना को
धारण करने वाली प्रोटीन के निर्धारण के लिए उतरदायी होते हैं l प्रत्येक प्रकार की सूचना
के लिए विशिष्ट प्रकार की प्रोटीन उत्तरदायी होती है l डी.एन.ए. के अणुओं में
अनुवंशिक गुणों का संदेस होता है जो जनक से संतति पीढ़ी में जाता है l
13. संतति में नर एवं
मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर
की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है l
उतर - निषेचन प्रक्रम के
दौरान शुक्राणु एवं अंडाणु का संलयन होता है l दोनों में समान गुणसूत्र
होते हैं l समसूत्रण के समय गुणसूत्रों की संख्या नर और मादा के
गुणसूत्रों के साम्मिलन के कारण दुगुनी हो सकती है l परन्तु अर्धसूत्रण के
कारण उनकी यह संख्या आधी हो जाती है l इस प्रकार संततियों में
जनकों के समान ही गुणसूत्र रहते है l इस प्रकार आनुवंशिक
योगदान में नर एवं मादा की साझेदारी समान होती है l
14. माँ के शरीर में
गर्भस्थ भ्रूण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता है ?
उतर - गर्भस्थ भ्रूण को
माँ के रुधिर से पोषण प्राप्त होता है l इसके लिए प्लेसेंटा की
संरचना प्रकृति के द्वारा की गई है l यह एक तश्तरीनुमा संरचना
है जो गर्भाशय की भित्ति में धसी होती है l इसमें भ्रूण की ओर से ऊतक
के प्रवर्ध होते हैं l माँ के ऊतकों में रक्त स्थान होते हैं जो
प्रवर्ध को ढांपते हैं l ये माँ से भ्रूण को ग्लूकोज, ऑक्सीजन और अन्य पदार्थ
प्रदान करते हैं l
15. क्या आप कुछ कारण सोच
सकते हैं जिससे पता चलता हो कि जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन द्वारा नयी संतति
उत्पन्न नहीं कर सकते ?
उतर - जटिल संरचना वाले
जीव पुनरूद्भवन द्वारा नई संतति उत्पन्न नहीं कर सकते क्योंकि अधिकतर बहुकोशिक जीव
विभिन्न कोशिकाओं समूह मात्र ही नहीं है l विशेष कार्य हेतु विशिष्ट
कोशिकाएँ संगठित होकर ऊतक का निर्माण करती हैं तथा उतक संगठित होकर अंग बनाते हैं, शरीर में इनकी स्थिति भी
निश्चित होती है l ऐसी सजग व्यवस्थित परिस्थिति में कोशिका-दर-कोशिका विभाजन
अव्यवहारिक है l
16. ऋतूस्राव क्यों होता
है ?
उतर - यदि नारी शारीर में
निषेचन नहीं हो, तो अंड कोशिका लगभग एक दिन तक जीवित रहती है l अंडाशय हर महीने एक अंड
का मोचन करता है और निषेचित अंड की प्राप्ति हेतु गर्भाशय भी हर महीने तयारी करता है
l इसलिए इसकी अंत: भित्ति मांसल एवं स्पोंजी हो जाती है l यह अंड के निषेचन होने की
अवस्था में उसके पोषण के लिए आवश्यक है l लेकिन निषेचन न होने की
अवस्था में इस पर्त की भी आवश्यकता नहीं रहती l इसलिए यह पर्त धीरे-धीरे
टूटकर योनी मार्ग में रुधिर एवं म्यूकस के रूप में बाहर निकल जाती है इस वश में
लगभग एक मास का समय लगता है l इसे ऋतुस्राव अथवा रजोधर्म कहते हैं l इसकी अवधि लगभग 2 से 8
दिनों की होती है l
17. ब्राहा निषेचन तथा
आतंरिक निषेचन का क्या अर्थ है ? सम्भोग अंग क्या होते हैं ?
उतर - ब्राहा निषेचन - जब
नर तथा मादा युग्मकों का संलयन मादा के शरीर के बहार होता है तो इस संलयन को
ब्राहा निषेचन कहते हैं, जैसे मेंढक में नर तथा मादा दोनों जिव सम्भोग
करते हैं और अपने-अपने युग्मकों को पानी में छोड़ देते हैं, शुक्राणु अन्डो को पानी
में ही निषेचित करता है l
ब्राहा निषेचन में अंडाणुओं की आतंरिक सुरक्षा की
अनुपस्थिति के कारण नष्ट होने के अवसर अधिक होते हैं, इसलिए इस बात की
निश्चितता के लिए कुछ अंडाणु निषेचित हो सकें, मादा अधिक अंडाणु उत्पन्न
करती है l
आतंरिक निषेचन - बहुत-से
जीवों जैसे कुत्ता , बिल्ली, गाय, कीट, मनुष्य, सरीसृप , पक्षी तथा स्तनधारियों
आदि में नर अपने शुक्राणुओं को मादा के शारीर के अन्दर छोड़ते हैं l शुक्राणु मादा के शारीर
के अन्दर ही निषेचित करते हैं ऐसे निषेचन को आतंरिक निषेचन कहते हैं l शुक्राणु (वृषण से ) मादा
के अंडाशय से निकले अंडाणु से संयोग करते हैं l मादा के शारीर में निषेचन
होता है l शुक्राणु के स्थानांतरण का कार्य सम्भोग कहलाता है इससे
सम्बंधित अंग सम्भोग अंग होते हैं l
18. पौधे में लैंगिक जनन की वख्या कीजिए l
उतर - फुल, पौधे का जनन अंग होता है l फुल के नर भागों को
पुंकेसर तथा मादा भाग को स्त्रीकेसर कहते हैं l पुंकेसर के परगकोषों में
परागकण होते है l परागकण नर युग्मक बनाते हैं l
(i) वर्तिकग्र (ii) वर्तिका तथा (iii) अंडाशय
स्त्रीकेसर के आधार वाले
चौड़े भाग में अंडाणु होते हैं l अंडाणु में बीजांड होते हैं जो मादा युग्मक
बनाते हैं l पुंकेसर के परगकोश में परागकणों का स्त्रीकेसर के अग्र भाग
जिसे वर्तिकाग्र कहते हैं, पर पहुँचना परागकण कहलाता है l परागकण के बाद परागकण से
एक परगनली निकलती है l परगनली में दो नर युग्मक होते हैं l इनमें से एक नर युग्मक
परगनली में से होता हुआ बीजांड तक पहुँच जाता है l यह बीजांड के साथ संलयित
हो जाता है जिससे एक युग्मनज बनता है l ऐसे संलयन को निषेचन कहते
हैं l युग्मनज माइटोटिक विधि द्वारा कई बार विभाजित होता है जिससे
अंततः एक नया पौधा बन जाता है l
19. परागण से लेकर पौधे
में बिज बनने तक सभी अवस्थाएं लिखिए l
उतर - परगकोश में परागकण
परिपक्व होने के बाद हवा, पानी या कीटों द्वारा स्त्रीकेसर के
विर्तिकाग्र पर पहुँच जाते हैं l इस प्रक्रिया को परागण कहते हैं l परागकण के बाद परागकण से
एक परगनली निकलती है l परगनली में दो नर युग्मक होते हैं l इनमें से एक नर युग्मक
परगनली में से होता हुआ बीजांड तक पहुँच जाता है l यह बीजांड के साथ संलयन
हो जाता है जिससे युग्मनज बनता है l ऐसे संलयन को निषेचन कहते
हैं l
युग्मनज, माइटोटिक विधि द्वारा कई
बार विभाजित होता है l निषेचन के बाद फुल के पंखुड़ी, पुन्केषर , वर्तिका तथा वर्तिकाग्र
गिर जाते हैं ब्राहा दल सुख जाता है और अंडाशय पर लगा रहता है l अंडाशय शीघ्रता से वृद्धि
करता है और इसमें स्थित कोशिकाएँ कई बार विभाजित होकर वृद्धि करतीं हैं और बिज का
बनना आरम्भ हो जाता है l बिज में एक नन्हां पौधा अथवा भ्रूण होता है l
20. लैंगिक जनन का क्या
अर्थ है ? इसकी क्या शर्त हैं ?
उतर - लैंगिक जनन एक
कोशिकीय तथा बहुकोशिकीय दोनों जीवों में होता है, लेकिन कुछ पौधे तथा
जंतुओं में जैसे- केचुआ, हाईड्रा में एक ही
जिव नर तथा मादा दोनों युग्मकों को
उत्पन्न करता है l ऐसे जीवों को उभयलिंगी या द्विलिंगी जिव कहते हैं l लैंगिक जनन में जीव की
लिंग कोशिकाएँ या युग्मक अर्थसुत्री कोशिका विभाजन द्वारा बनते हैं l ये अगुणित होते हैं l
21. पौधों में लैंगिक जनन कैसे होता है ?
उतर – पौधों में लैंगिक
जनन – एन्जिओस्पर्मस (पुष्पी पौधे) में अधिकांश पुष्प द्विलिंगी होते हैं l इनमें
दोनों प्रकार के जननांग होते है l पुमंग को नर जननांग या जायँग तथा करपाल को मादा
जननांग कहते हैं l पुमंग में परागकण बनते हैं जिसे माइक्रोस्पोर भी कहते हैं l
जायँग में बीजांड या मेगास्पोर बनते हैं ये अर्धसूत्री विभाजन द्वारा बनते हैं l
इनके निषेचन के बाद फल तथा बीज बनते हैं l बीज के अंकुरण के बाद नन्हां पौधा बनता
है l
22. जंतुओं में निषेचन के
महत्त्व को समझाइए l
उतर – निषेचन का महत्त्व
निम्नलिखित है –
(i)
शुक्राणु का प्रवेश अंडाणु को सक्रीय करता है l
(ii)
इनके संयोग से युग्मनज बनता है l
(iii)
इनके संयोग से जीव में गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित
अर्थात् पैत्रिकों के समान हो जाती है l
(iv)
संतानों में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती है l
23. कुछ पौधों को उगने के
लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है ?
उतर – कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग किया
जाता है क्योंकि –
(i)
कुछ पौधे बीज रहित होते हैं अथवा लम्बी सुषुप्तावस्था में
बीज उत्पन्न करते हैं l
(ii)
आनुवांशिक गुण जनन संतति में कायम रहते हैं l
(iii)
कुछ पौधों का विकास तीव्र गति से किया जाता है l
24. यौनारम्भ के समय
लड़कियों में कौन-कौन से परिवर्तन दिखाई देते हैं ?
उतर – यौनारंभ के समय
लड़कियों में निम्न परिवर्तन दिखाई देते हैं –
(i)
शारीर के कुछ नए भागों जैसे कांख और जांघों के मध्य जननांगी
क्षेत्र में बाल गुच्छ निकल आते हैं l
(ii)
हाथ, पैर पर महीन रोम आ जाते हैं l
(iii)
त्वचा तैलीय हो जाती है l
(iv)
वक्ष के आकार में वृद्धि हो जाती है l
(v)
स्तनाग्र की त्वचा का रंग गहरा होने लगता है l
(vi)
रजोधर्म होने लगता है l
25. मानव में वृषण के
क्या कार्य हैं ?
उतर – मानव के शारीर में
वृषण के संख्या में दो होते हैं जो शारीर के बहार त्वचा की एक थैली , वृषण कोष में
स्थित होते हैं l
वृषण के निम्नलिखित कार्य
हैं –
(i)
वृषण में शुक्राणु उत्पन्न होते हैं जो लैंगिक जनन क्रिया
में सक्रिय भाग लेकर भावी पीढ़ी को जन्म देने में सहायक होते हैं l
(ii)
वृषण में टैस्टोस्टिरोन नामक हार्मोन उत्पन्न होता है जो
मानव शारीर में द्वितीयक जनन लक्षणों को स्थापित करने के लिए उतरदायी होता है l
26. अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के क्या लाभ
हैं ?
उतर- अलैंगिक जनन के
अपेक्षा लैंगिक जनन अधिक श्रेष्ट है l
इसके मुख्य कारण
निम्नलिखित हैं –
(i)
लैंगिक जनन में सुक्राणु तथा अंडाणु के सांयुजन के कारण DNA
द्वारा पैत्रिक गुण वर्तमान पीढ़ी के सदस्य में हस्तानांतरित हो जाते हैं जो जीवित
रहने के लिए अधिक शक्तिशाली होते हैं जबकि लैंगिक जनन में एकल DNA होने के कारण
जीवित रहने की संभावना कम हो जाती है l
(ii)
लैंगिक जनन में डी.एन.ए. की दोनों प्रकृतियों में कुछ न कुछ
अंतर अवश्य होते हैं जिनके परिणामस्वरूप नयी पीढ़ी के सदस्य जीव में विभिन्नता
अवश्य दिखाई देती है l यदि उसमें किसी कारण से विभिन्नता आ जाती है तो जीव की
मृत्यु हो जाती है l
(iii)
लैंगिक जनन उद्विकास में बहुत सहायक है जबकि लैंगिक जनन
उद्विकास में संभव नहीं है l
27. परागण क्या है ?
परपरागण का वर्णन करें ?
उतर – पुंकेसर के परगकोश
से स्त्रीकेसर के वर्तिकग्र पर पराग कणों का यह स्थानांतरण जब एक ही फुल में अथवा
एक ही पौधे के दो फुल के बिच होता है तब इसे स्वपरागण कहते हैं l स्वपरागण करने
वाले फुल अधिकतर आभाहीन तथा सफ़ेद होते हैं l जब यह परागण क्रिया एक ही जाती के दो
अलग-अलग पौधों के फूलों के बिच होती है तब उसे परपरागण कहते हैं l परपरागण करने
वाले फुल अधिकतर रंगीन तथा आकर्षक होते हैं l परपरागण के समय, परागकणों का
स्थानांतरण हवा द्वारा , पानी द्वारा अथवा कीटों द्वारा होता है l परागण के फुल
में निषेचन क्रिया होती है जिसके उपरांत बीज तथा फल बनाते हैं l स्वपरागण को
आटोगैमी कहते हैं तथा परागण को एलोगैमी कहा जाता है l
28. ईस्ट में मुकुलन के
विभिन्न पदों का वर्णन करें l
उतर – ईस्ट में
कलिकोत्पदन या मुकुलन – एककोशिकीय फफूंदी में कलिका द्वारा जनन होता है l पहले एक
उभार बनता है तथा फिर केन्द्रक का दो भागों में विभाजन होता है l परिमाप में
वृद्धि होती है तथा उसके ऊपर उन: विभाजनों द्वारा एक श्रृंखला बन जाती है l
29. फुल के जननांगों का
वर्णन कीजिए l
उतर – पुष्प के जननांग –
फुल के जननांग हैं : पुंकेसर तथा स्त्रीकेसर l
(i)
नर जनन अंग पुंकेसर होते हैं l पुंकेसर के अग्र भाग पर एक
चपाटी रचना होती है जिसे परगकोष कहते हैं l इनमे परागकोष बनते हैं तथा परिपक्व
होते हैं l यह नर युग्मक कहलाते हैं l प्रत्येक पुंकेसर के दो भाग होते हैं – परगकोश तथा फिलामेंट l
परगकोश में दो कोष होते हैं l इन्हें संयोजी जोड़ता है l
(ii)
स्त्रीकेसर पुष्प का मादा जननांग है l इसके तीन भाग हैं
: वर्तिकाग्र , वर्तिका तथा अंडाशय l
वर्तिकाग्र स्त्रीकेसर का उपरी चौड़ा भाग होता है l इसी पर परागकण चिपकते हैं l
इसके निचे लम्बी वर्तिका होती है l यह अंडाशय तक होती है l अंडाशय स्त्रीकेसर का
निचला फुला हुआ भाग होता है l इसमें बीजांड भरे रहते हैं l निषेचन के बाद यही भाग
फल तथा बीज बनता है नर तथा मादा युग्मकों के मिलने से युग्मनज बनता है l
30. पौधों में द्विनिषेचन
का वर्णन कीजिए l
उतर – परागकण वर्तिकाग्र
पर गिरकर फुल जाते हैं l इनसे पराग नलिका निकलती है जिसमें 3 नर युग्मक होते हैं l
नर तथा मादा युग्मक का संयोग ही निषेचन है l इसके बाद युग्मनज बनता है l यह
द्विगुणित होता है l दूसरा नर युग्मक द्वितीय केन्द्रक के साथ मिलकर त्रिगुणित
केन्द्रक बनाता है l यह क्रिया त्रिसमेकन कहलाती है l चूँकि निषेचन दो बार होता
है, अत : इसे द्विनिषेचन कहते हैं l द्विनिषेचन का वर्णन सर्वप्रथम नावासचिन (1898)
ने किया था l
31. ऊतक संवर्धन को
परिभाषित कीजिए l
उतर – इस विधि म पौधों के
ऊतक के एक छोटे-से भाग को काट लेते हैं l इस ऊतक को उचित परिस्थितियों में पोषक
माध्यम में रखते हैं l ऊतक से एक अनियमित ऊधर्व सा बन जाता है जिसे कैलास कहते हैं
l कैलास का उपयोग पुन : गुणन में किया जाता है l इस ऊतक का छोटा-सा भाग किसी अन्य
माध्यम में रखते हैं जो पौधे में विभेदन की प्रक्रिया को उतेजित करता है l इस पौधे
को गमलों या भूमिं में लगा दिया जाता है और उनको परिपक्व होने तक वृद्धि करने दिया
जाता है l ऊतक संवर्धन से आजकल आर्किड , गुलदावदी , शतावरी तथा बहुत-से अन्य पौधे
तैयार किये जाते हैं l
आनुवांशिकता एवं जैव विकास
1.
क्या एक तितली तथा एक
चमगादड़ के पंखों को समजात अंग कहा जा सकता है ? क्यों अथवा क्यों नहीं ?
उतर – तितली के पंख तथा
चमगादड़ के पंख कार्य करने में तो समान हैं परन्तु उत्पति में दोनों असमान है l अत:
ये समजात अंग नहीं हैं l
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Biology Question And Answer class 10 |
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2.
1 Comments
Good job
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